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फकीर का फैसला


विधा - कहानी
शीर्षक - फकीर का फैसला
लेखिका - अनिला द्विवेदी तिवारी


फकीर का फैसला 


धर्म और अध्यात्म को बहुत से लोग एक ही समझते हैं परंतु फिर भी  दोनों में सूक्ष्म अंतर है। अध्यात्म दो शब्दों के मेल से बना है,,, "अध्य+आत्म"।
अध्य का अर्थ होता है,,, "चारों ओर" और आत्म का अर्थ होता है "स्वयं"। 
अर्थात अपने आप में उतरकर स्वयं के अध्ययन को आध्यात्म कहते हैं।
धर्म का अर्थ है "धारयेत" अर्थात धारण करना।
हमारी यह कहानी धर्म और अध्यात्म दोनों  को दर्शाती है।

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प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था जिसकी एक सुंदर और गुणसंपन्न बेटी थी। ब्राह्मण किसी प्रतिष्ठित परिवार के योग्य और गुणसंपन्न लडके के हाथों में अपनी बेटी का हाथ देना चाहता था। कई लड़के मिले लेकिन ब्राह्मण को अपने जंवाई के रूप में कोई लड़का नही जंचा।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और लड़की की उम्र बढ़ती गई। ब्राह्मण और उसकी पत्नी अपनी बेटी के लिए चिंतित थे। साथ ही ब्राह्मण का बेटा भी अपनी बहन के लिए चिंतित रहने लगा।
कोई अच्छा लड़का मिल भी जाता तो उनकी दहेज की मांग पूरे करने में ब्राह्मण परिवार असमर्थ रहता।
ब्राह्मण अधिक से अधिक घरों में यजमानी करता था और उसका बेटा दूसरे गाँवों में जाकर मजदूरी करता था।
ब्रह्मण की पत्नी लोगों के घर अनाज पीसकर, खेतों में कामकर पैसे जमा करती थी। फिर भी दहेज लायक रकम  जमा करने में वे असमर्थ रहे।  
ब्राह्मण परिवार लगातार दुःख और तनाव में जी रहा था। लड़की सोचती उसकी वजह से घर के लोगों का सुख छिन गया है। वह मन ही मन खुद को कोसती रहती थी।
एक दिन ब्राह्मण दूसरे गाँव अपने एक यजमान के घर पूजा कराने गया था। ब्राह्मण का बेटा भी अपने काम पर गया था। 
उसी दिन एक सुंदर युवक पथिक पानी पीने और दोपहर की गर्मी में कुछ पल विश्राम करने के इरादे से ब्राह्मण के दरवाजे पर आ पधारा। 
ब्राह्मण की पत्नी को वह लड़का एक ही नजर में जंच गया। आवभगत के बाद ब्राह्मण की पत्नी ने उससे अपनी बेटी के रिश्ते की बात की। लड़का सहर्ष राजी हो गया। 
उधर स्ंयोग ऐसा हुआ कि ब्राह्मण को भी अपने यजमान के घर एक बड़े अच्छे लडके का प्रस्ताव मिला। 
ब्राह्मण लडके को घर लिवा लाया  ताकि वह लड़की को देखकर शादी का निर्णय करे। दूसरा एक संयोग और हुआ की उसी दिन ब्राह्मण के बेटे को भी एक अच्छा लड़का मिल गया और वह भी उसे अपने साथ घर ले आया।
इधर सुबह गाय के चारे के लिए जंगल गई लडकी शाम तक घर नही लौटी। अतिथियों को घर पर छोड़ ब्राह्मण और उसका बेटा उसकी तलाश में निकले। देर शाम जब वे लौटे तो उनके साथ लडकी नही बल्कि उसकी लाश थी। 
लड़की ने जंगल में जाकर आत्महत्या कर ली थी।
तीनों युवक आपस में एक दूसरे से अनजान और मन ही मन लडकी को अपनी पत्नी मान बैठे थे।
 इस घटना से वे तीनों सन्न रह गए। तीनों ने ही तत्काल आजीवन विवाह नही करने का फैसला कर लिया।
लड़की के दाह-संस्कार के बाद  उनमें से एक युवक ने  लड़की की अस्थियां और राख बटोरी और अपने पास रख लिया।
दूसरा युवक वैरागी बनकर गांव-गांव, शहर-शहर भटकने लगा।
तीसरे ने श्मशान में कुटिया बनाई और वहीं रहने लगा।
एक दिन वैरागी युवक भिक्षा मांगते हुए एक विचित्र परिवार में पहुंचा। घर की मालकिन ने उसे आदर से खाने के लिए बिठाया।
तभी उसकी छोटी बेटी ने भोजन जूठा कर दिया था। गुस्से में उसकी माँ ने बेटी को इतनी जोर से डंडा मारा कि वह वहीं पर तड़प कर मर गई।
तभी घर का मालिक बाहर से आया, उसने तुरंत अंदर जाकर एक पुरानी पोथी निकाली और बच्ची के सिर के पास बैठकर उसमे लिखा कोई मंत्र पढ़ा तब बच्ची जी उठी। 
वैरागी युवक के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। उसने मन ही मन एक योजना सोची और वह रात को वहीं पर रुक गया। 
आधी रात जब सारा घर नींद में बेसुध था तब उसने चुपके से वह पोथी चुरा ली और उस श्मशान की तरफ चल दिया, जहां उसकी होने वाले पत्नी की चिता जली थी। 
श्मशान में तीनों युवक इकट्ठे हुए, लडकी  की अस्थियां और राख निकाली गई वैरागी युवक ने पोथी खोलकर मंत्र पढ़ा।
अस्थियों और राख की ढेरी में से लडकी जी उठी। यह देखकर तीनों आश्चर्यचकित हो उठे।
तीनों लड़के  हतप्रभ होकर उसे बहुत देर तक देखते ही रहे।
अब सवाल यह था कि लडकी किसकी पत्नी बने? 
अस्थि और राख वाला युवक और मंत्र से जिंदा करने वाला युवक दोनों का अपना अपना दावा था। परंतु लडकी बिलकुल चुप थी।
तभी उधर से एक फकीर गुजरा। युवकों ने उनसे  मध्यस्तता करने की विनती की। पूरी कहानी जानने के बाद फकीर अस्थि और राख वाले व्यक्ति से मुखातिब होकर कहा ,,"बेटा तुमने अस्थियां एकत्र कर वह काम किया है जो कोई बेटा अपनी माँ  के लिए करता,  इस लिहाज से यह लड़की तुम्हारी माँ हुई।
फिर वह पोथी वाले युवक  की ओर मुड़ा और बोला, " बेटा तुमने इस लड़की को जीवन दिया है, इस लिहाज से तुम इसके पिता हुए।
आखिर में फकीर ने कहा,,, "और इस युवक ने (तीसरे युवक को) वही किया जो एक जीवन साथी करता है। वह यहाँ पर रहकर बस उसकी स्मृति में जीवन काटता रहा।
इस लिहाज से लड़की चाहे तो इस तीसरे युवक की पत्नी बन सकती है।"
उस फकीर की बात पर दोनों युवकों ने आत्ममंथन किया तो उन्हें उस फकीर की बात उचित लगी। तब उन दोनों ने अपनी जिद छोड़ दी।
फिर चारों को आशीर्वाद देकर बुद्धिमान फकीर अपनी राह चला गया।


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8 Comments

Mohammed urooj khan

30-Jan-2024 12:07 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

28-Jan-2024 05:34 PM

Nice

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Alka jain

28-Jan-2024 04:49 PM

Nice

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